सोच- आदमी की
सोच- आदमी की
इक सोच ही तो है जो एक उपन्यास को गढ़ देती है.
एक बीज ही है जो बरगद के पेड़ को ‘बढ़’ देता है.
बीज को सड़ने न दें सोच को उजड़ने न दें
दोनों ही वक़्त पर अपना काम कर जाएँगे.
उपन्यास गढ़ जाएँगे, पेड़ “बढ़” जाएँगे.
इकसच
आदमी की यह
इक सोच ही है जो उसे आदमी से मानव, मानव से इंसान, दानव अथवा महामानव, बनने में सहायक सिद्ध हो उसकी ज़िंदगी का रुख़ किसी भी दिशा की ओर मोड़ने में सक्षम होती है.
आदमी यदि चाहे तो सोच बदलने में वक़्त ही कितना लगता है! आदमी की सोच बिजली की गति से भी तेज़ रफ़्तार से उड़ने वाली अमूर्त भावना है, अमूर्त (इनटॅंजिबल) जो स्पर्श से न जानी जा सके और न
ही आँखों से देखी जा सके. यह सोच एक बीज के समान ही तो होती है.
जैसे बीज के लिए उपयुक्त ज़मीन, मिट्टी, पानी, खाद की आवश्यकता होती है ठीक उसी प्रकार सोच को उड़ान भरने के लिए एक उत्तम विचारवान मस्तिष्क, उसमें स्थित स्थिर मन, एक मज़बूत सोच का आधार और व्यक्त करने लायक शब्दावली, ज्ञानवान दूर-दृष्टि की आवश्यकता होती है
इन सब सहायक अवयवों के अतिरिक्त अच्छे साथी, मित्र, जीवन-साथी, वालदेन (माता-पिता), बच्चे और बहुत उम्दा व खुशनुमा वातावरण, अत्युत्तम खान- पान फलदायक सिद्ध होते हैं. मन के प्रसन्न और प्रफुल्लित होने का सीधा और सामान्य अर्थ है कि सोच को उड़ान के लिए सक्षम, सामर्थ्यवान पंख और परवाज़ हासिल हो गए. मन को इसके इलावा तो और कुछ चाहिए भी नहीं.
दोस्तो एक बहुत ज़रूरी वस्तु जिसका मैने अभी ज़िक्र भी नहीं किया वो है एक हृष्ट-पुष्ट, बलवान स्वस्थ शरीर. हम सब यह जानते तो हैं कि एक स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का वास होता है परंतु मानते नहीं. स्वस्थ शरीर के लिए चाहिए पौष्टिक व स्वादिष्ट भोजन. एक कहावत है: शरीर और मन चंगा तो कठौती में गंगा.
यहीं से शुरू हो जाता है सोच की उड़ान और उसका सफ़र. यह सोच ही है जो आदमी को विजेता बनाती है. जिसकी सोच में जीत भरी होती है उसकी कभी हार नहीं होती और उसके सामने तो सारी कायनात भी सिर झुकाने को मजबूर हो जाती है. आदमी की सोच से अधिक तेज़ रफ़्तार से उड़ने वाली कोई भी मूर्त अथवा अमूर्त वस्तु का नाम भी मेरे ज़ेहन में नहीं आता. नज़र की गति अत्यधिक तेज़ मानी गई है परंतु आँखें खोले बिना भी आप आसमान के ग्रहों का अवलोकन मन की आँखों से कर सकते हैं. भौतिक रूप से चाहे आप कहीं आ-जा न सकें परंतु मानसिक तौर पर आप विश्व-भ्रमण कर सकते हैं. यही है सोच का बेमिसाल कमाल.
यह सोच ही है आदमी की जो आदमी को डरपोक, दब्बु, दबंग, तेज़ खिलाड़ी, धावक, चोर, स्मग्लर, आर्मी-मैन, मंत्री या संतरी कुछ भी बनाने में समर्थ भी होती है और सक्षम भी करती है.
फ्रांसिस बेकन का सोचना था कि बुद्धिमान व्यक्ति अपनी सोच से और भी अधिक अवसर पैदा कर लेता है जितने उसे उसके नसीब से हासिल होते हैं. यह आदमी की सोच ही है जो उसे कठिनाइयों में आत्मज्ञान कराती हैं और उसे एहसास करा देती हैं कि वह किस मिट्टी का बना है. "आदमी किस मिट्टी का बना है" यहाँ पर मिट्टी का तात्पर्य डी.एन.ए. से है. वैज्ञानिक शोध से देखा और समझा गया है कि प्राणी की उत्पत्ति हवा, मिट्टी व पानी से ही हुई है.
सकारात्मक सोच ही है जो आदमी को अपने सभी काम सुरुचिपूर्ण तरीके से समय पर करने में सार्थक कर उसे एक सफल व्यक्ति कहलाने की खुशी हासिल कराती है.
आदमी की सही अचरज भरी सोच के ही प्रकार हैं जो उसे लक्ष्य को भेदने में सफलता/ असफलता दिलाते हैं.
सकारात्मक सोच:
1. 1. सहायता की तत्पर सोच
2. 2. दबंग सोच
3. 3. पुलसिया सोच
नकारात्मक सोच:
1.
क्रोधभरी, आत्मघाति सोच
2. अहंकारी, धोखेबाज़ सोच
3. ख़ूँख़ार, चोर सोच- धन, समय, शब्दों आदि की चोरी
प्रत्येक व्यक्ति की सोच अलग, सोचने/बोलने का ढंग अलग व उस सोच से उत्पन्न व्यवहार और उसको प्रस्तुत करने का ढंग भी अलग ही होता है. इसलिए मन में केवल जीत की ही तस्वीर उकेर कर रखिए तो जीत का सुख पहचानने में कोई ग़लती न करेंगे, यदि आपने सोचा कि आप जीत
गए तो निश्चित तौर से जान के रखिए कि आपको जीत ही हासिल होगी.
हम पाब्लो पिकासो के आभारी हैं
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