दुनियावी मंज़र

                         दुनियावी मंज़र

कितना मज़ेदार हो वो दुनियावी मंज़र;

ना मेरी कोई सीमा ना

कोई तेरा समंदर

                    ना वीसा, ना पासपोर्ट का हो कोई आडंबर ;                 

ना कोई पोरस हारे,

ना ही कोई होवे सिकन्दर.

ना कोई दीनार, ना डॉलर,

ना रूबल,ना रुपैया;

ना ही कोई बीच की दीवार,

ना बॉर्डर, ना बाड़ और

ना ही कोई किवाड़.

इक बड़ा सा गाँव;

जहाँ चाहें वहीं ले जाएँ पाँव,

ना तेरा, ना मेरा ;

हो सब कुछ हमारा;

ये धरा, ये धरातल;

हो सब का प्यारा.

और सभी कह उठें

सारा जहाँ हमारा !

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सोच- आदमी की